Xxx आंटी चुदाई कहानी में मैं कमरा लेकर शहर में रहता था. एक दिन आम्मी ने बताया कि उनकी सहेली मेरे रूम पर रुकेंगी. मैं उनको जानता था. आंटी मस्त माल थी.
दोस्तो, मैं इरफ़ान हूँ. मेरी उम्र 19 साल है.
आज मैं आपके साथ एक ऐसी रात की सेक्स कहानी साझा करने जा रहा हूँ जो मेरे दिल और जिस्म दोनों को झकझोर गई.
ये Xxx आंटी चुदाई कहानी मेरे गांव से आई रुबीना आंटी की है जिनके साथ मैंने एक रात ऐसी बिताई, जो न सिर्फ उनकी मर्जी से थी, बल्कि पूरी रात का हर पल आग और जुनून से भरा हुआ था.
यह बात जनवरी 2023 की है, जब मैं पटना में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था.
एक दिन कॉलेज से लौटते वक्त अम्मी का फोन आया.
वे बोलीं- बगल वाली रुबीना आंटी पटना आई हैं. वे उधर काम से आई थीं, पर अब रात हो गई है. वह आज तुम्हारे रूम पर रुकना चाहती हैं.
मैंने बिना हिचक हामी भर दी.
आखिर रुबीना आंटी एक ऐसी औरत थीं, जिनके साथ मेरी हमेशा खूब बनती थी.
हम गांव में घंटों बातें करते, बाजार जाते और हंसी-मजाक में वक्त गुजर जाता.
उनके पति बहरीन में मैनेजर थे, बच्चे नहीं थे और उनकी जिंदगी में एक रंगीन स्टाइल था, जो गांव की मिट्टी में भी शहरी चमक बिखेरता था.
रुबीना आंटी का फिगर बताऊं तो वे 36-28-38 की थीं.
उनकी कमर पतली, कूल्हों का उभार गोल और स्तन इतने भरे-पूरे कि हर कदम के साथ उनकी चूचियों की थिरकन का अहसास होता था.
गांव में रहकर भी आंटी किसी मॉडर्न हसीना से कम न थीं.
उनकी आंखों में एक चमक, होंठों पर मुस्कान और चाल में वह ठसक … उफ़ … बस देखते ही बनता था.
शाम ढलते-ढलते उनका फोन आया.
वे मेरे रूम के आस-पास थीं, पर गली का पता नहीं समझ पा रही थीं.
मैंने व्हाट्सएप पर लोकेशन भेजी और उन्हें लेने निकल गया.
जैसे ही गली के मोड़ पर नजर पड़ी, मेरी सांसें थम गईं.
रुबीना आंटी वहां खड़ी थीं.
टाइट नीली जींस में उनकी टांगों का हर उभार साफ झलक रहा था.
ऊपर सफेद, पतली-सी कुर्ती, जो इतनी चुस्त थी कि उनकी ब्रा की रूपरेखा और उनके स्तनों का भारीपन साफ नजर आ रहा था.
हवा में लहराते बाल खुले और चेहरे पर वही शरारती मुस्कान.
मैंने अनायास अपने होंठ दांतों तले दबा लिए.
वे मुझे देखकर बोलीं- क्या देख रहा है इरफ़ान? चल न!
उनकी आवाज में एक हल्की-सी छेड़ थी.
मैं होश में आया और हंसते हुए कहा- हां-हां, चलते हैं.
रास्ते में हम दोनों बातें करने लगे.
मैंने मौका देखकर कहा- आंटी, आज तो आप कुछ ज्यादा ही हसीन लग रही हैं.
वे हल्के से मुस्कुराईं- अच्छा? ज्यादा बिगड़ मत इरफ़ान!
मैंने हिम्मत जुटाई और कह ही दिया- बिगड़ना तो बनता है. आपकी ये टाइट जींस, ये कुर्ती … और आपके ये उभार … किसका दिल न डोले?
वे ठहाका मारकर हंसीं- बड़ा शैतान हो गया है तू! बता, मुझमें ऐसा क्या खास है?
मैंने उनकी आंखों में देखा- सब कुछ खास ही तो है आंटी. आपकी कमर की यह लचक, आपके स्तनों की ठोस सी गोलाई और ये चाल … बस, क्या बताऊं!
वे मुझे खुलता देख कर हंसकर टाल गईं पर उनकी आंखों में एक चमक थी मानो मेरी बातें उनके जिस्म को छू रही हों.
कमरे पर पहुंच कर मैंने चाय बनाई, थोड़ी इधर-उधर की बातें कीं.
उनका पटना आना, उनका काम वगैरह यही सब जाना.
लेकिन हवा में कुछ और ही था.
उनकी हर अदा … बालों को उंगलियों से सहलाना, कुर्ती को ठीक करते वक्त स्तनों का हल्का-सा उभारना … उनकी ये अदाएं मेरे दिल की धड़कनों को तेज कर रही थीं.
शाम को मार्केट जाने से पहले मैंने रुबीना आंटी से पूछा- आज रात खाने में क्या पसंद करेंगी?
वे मुस्कुराईं, उनकी आंखों में शरारत चमकी.
‘तुम्हारी मर्जी, इरफ़ान. जो चाहो बना लो.’
मैंने हल्के से छेड़ा- अरे, आप अपनी पसंद तो बता दीजिए, बाकी मैं सब देख लूँगा.
वे ठहाका मारकर हंसीं और बोलीं- ठीक है, केले बना लो!
यह कहते हुए हंसते-हंसते उनकी सांसें उखड़ गईं.
मैंने भौंहें उचकाईं- केले? क्या सचमुच?
वे हंसी रोकते हुए बोलीं- अरे यार, मजाक कर रही हूँ!
लेकिन उनकी उस हंसी में कुछ और ही था.
एक नर्म व उत्तेजक पुट, जो मेरे दिल को गुदगुदा गया.
आज आंटी का मूड कुछ ज्यादा ही रसभरा लग रहा था, मानो वह हर पल में मुझे छेड़ रही हों.
मैं मार्केट से चिकन ले आया.
रात का खाना खाकर हम सोने की तैयारी करने लगे.
मेरा रूम छोटा-सा था, एक ही बेड और जनवरी की ठंड हड्डियां जमा रही थीं.
मैं बेड पर बैठा, कम्बल से पैर ढके, दीवार से पीठ टिकाए मोबाइल स्क्रॉल कर रहा था.
आंटी मेरे बगल में खड़ी थीं, जैसे कुछ सोच रही हों.
मैंने कहा- क्या हुआ आंटी? आइए, सो जाइए. बेड तो एक ही है और ठंड भी कम नहीं. इसी पर एडजस्ट करना पड़ेगा.
वे हल्के से झिझकीं, फिर बोलीं- नहीं, बात वह नहीं … दरअसल, मुझे जींस पहन कर नींद नहीं आती … और मैं कोई एक्स्ट्रा ड्रेस भी नहीं लाई.
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- तो … कोई बात नहीं है … जैसा आपको सहज और ठीक लगे … वैसे आ जाओ!
वे मेरी तरफ देखकर बोलीं- अगर तुम्हें बुरा न लगे … तो क्या मैं जींस उतारकर सो जाऊं?
मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई.
मैंने नर्म स्वर में कहा- हां हां बिल्कुल आंटी … भला मुझे क्या दिक्कत होगी!
वे हंस दीं- ठीक है, फिर लाइट बंद कर दो … और हां, थोड़ा अपनी आंखें भी मूँद लो!
उनकी आवाज में मस्ती थी.
मैंने उनकी तरफ देखा और हम दोनों एक पल को हल्के से मुस्कुराए.
मैंने कमरे की लाइट बंद की, नाइट बल्ब जलाया और कम्बल में मुँह छिपाकर लेट गया.
कुछ पलों बाद आंटी ने अपनी जींस कुर्ती उतारी और कम्बल में मेरे बगल आ गईं.
वे मेरी तरफ पीठ करके लेटीं और मैं उनके करीब, उनका गर्माहट भरा अहसास मेरे सीने को छू रहा था.
दोस्तो, मैं शर्ट पहनकर सो नहीं पाता, तो उस रात भी मेरा सीना नंगा था. सिर्फ जींस बदन पर थी.
ठंड इतनी थी कि नींद कोसों दूर थी.
तभी आंटी की नर्म आवाज आई- इरफ़ान, थोड़ा सटकर सोएं तो ठंड कम लगेगी न!
इतना कहकर वे धीरे से पीछे खिसकीं और उनका नंगा कूल्हा मेरे लौड़े से टकराया.
दोस्तो, उस पल मेरे पूरे बदन में बिजली-सी दौड़ गई.
उनकी गांड की गर्मी, उनकी सांसों की लय … सब कुछ मेरे होश उड़ा रहा था.
तभी उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और धीरे से अपने पेट पर रख दिया.
उनकी नाभि के पास की त्वचा इतनी मुलायम थी कि मेरी उंगलियां खुद-ब-खुद उसकी गहराई में खोने लगीं.
मैंने हल्के-हल्के उनकी नाभि को सहलाया, मेरी उंगली उस गहरे गड्डे में डूबती चली गई.
आंटी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस उनकी सांसें गहरी होती गईं.
मेरा हौसला बढ़ा और मेरी उंगलियां धीरे-धीरे उनकी ब्रा की किनारी तक पहुंच गईं, जहां उनके स्तनों का भारीपन मेरे स्पर्श को और बेकरार कर रहा था.
तभी मुझे अहसास हुआ कि आंटी धीरे-धीरे अपने कूल्हों को मेरी जांघों पर रगड़ रही थीं.
मेरी जींस में मेरा लंड तन चुका था और उसकी कठोरता आंटी को साफ महसूस हो रही थी.
मैंने खुद को रोकने की कोशिश की, लेकिन उस पल मेरी जींस मुझे बोझ लग रही थी.
तभी आंटी की खनकती हुई आवाज आई- इरफ़ान, ये जींस चुभ रही है. उतार दो ना!
मैंने हल्के से छेड़ा- आंटी, आप ही उतार दीजिए न!
मेरे शब्द सुनकर वे मेरी तरफ पलटीं और उनकी आंखों में एक शरारती चमक थी.
वे मेरे करीब आईं, उनकी उंगलियां मेरी जींस के बटन तक पहुंचीं.
धीरे-धीरे बटन खुला और जब उन्होंने जींस को नीचे सरका दिया.
उसी के साथ मेरा अंडरवियर भी थोड़ा खिसक गया.
मेरा लंड आधा बाहर आ गया और आंटी के हाथ उस पर लग गए.
आंटी की नजर मेरे चेहरे पर ठिठक गई.
वे मुस्कुराईं फिर उन्होंने बड़े प्यार से मेरे अंडरवियर को ऊपर खींच दिया.
लेकिन उनकी उंगलियों का स्पर्श मेरे अंडकोशों को छू गया और उस एक पल में मेरी सांसें थम गईं.
नाइट बल्ब की मद्धम रोशनी में मैंने आंटी की ओर देखने की कोशिश की.
उनके निचले होंठ दांतों तले दबे थे और उनकी आंखें कंबल के अन्दर मेरे लंड पर टिकी थीं.
उनकी नजरें शायद इतनी कामुक हो गई थीं मानो वे मेरे लंड को अपने भीतर समा लेना चाहती हों.
आंटी का खेल मुझे समझ आ गया था; वे अनजान बनकर इस पल का लुत्फ़ उठाना चाहती थीं.
मैंने भी सोचा कि ठीक है. उनके इस शरारती खेल में मैं भी साथ दे देता हूँ.
आंटी वापस मेरी तरफ पीठ करके लेट गईं.
इस बार वे मेरे इतने करीब थीं कि उनके कूल्हों की गर्मी मेरे बदन को छू रही थी.
इस बार उन्होंने मेरा हाथ अपने पेट पर नहीं, बल्कि अपने भरे-पूरे स्तनों पर रख दिया.
मेरी उंगलियां धीरे-धीरे उनकी ब्रा के ऊपर से उनके स्तनों को सहलाने लगीं.
उनकी नर्म त्वचा और मम्मों का उभार मेरा होश उड़ा रहा था.
आंटी ने अपने मखमली कूल्हों को मेरे लंड पर सटा दिया जो मेरे अंडरवियर में तनकर तंबू बन चुका था.
आंटी ने एक पतली-सी स्ट्रिंग पैंटी पहनी थी जो उनके कूल्हों की गहराई में धँसकर गायब-सी हो गई थी.
वे धीरे-धीरे अपने कूल्हों को मेरे लंड पर रगड़ रही थीं और हर रगड़ के साथ मेरा लंड उनकी नर्म गहराई में और समाता जा रहा था.
मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया.
मैं थोड़ा पीछे खिसका और मैंने एक झटके में अपना अंडरवियर उतार फेंका.
अब मेरा नंगा लंड उनके कूल्हों पर दब रहा था.
मेरे लंड के स्पर्श को महसूस करते ही आंटी ने भी अपनी पैंटी उतार दी.
अब कुछ भी हमारे बीच नहीं था.
मेरा लंड उनके नंगे कूल्हों की गहराई में था और उनकी हर हलचल मेरे बदन में आग लगा रही थी.
वे धीरे-धीरे अपने कूल्हों को मेरे लंड पर रगड़ रही थीं, जैसे हर पल को और तीव्र करना चाहती हों.
कुछ देर इस नशीले मजे में डूबने के बाद आंटी ने अपना एक पैर हल्का-सा मोड़ा और मेरा लंड उनकी चुत के मुहाने पर सैट हो गया.
मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं.
मैंने उनके मखमली पेट को एक हाथ से पकड़ा और हल्का-सा धक्का दिया लेकिन मेरा लंड फिसल गया.
तभी आंटी की नर्म आवाज मेरे कानों में गूँजी- पहले इसे थूक से गीला कर लो!
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- आप ही कर दीजिए ना!
वे हल्के से हंसीं, फिर अपने हाथ में थूक लिया और मेरे लंड के सिरे पर मलने लगीं.
दोस्तो, जब उनकी उंगलियों ने मेरे लंड को पकड़ा, एक सिहरन मेरे पूरे बदन में दौड़ गई.
उन्होंने बड़े प्यार से मेरे लंड को गीला किया, फिर उसे अपनी चुत के छेद पर सैट करते हुए फुसफुसाईं- आराम से घुसाना इरफ़ान. तुम्हारा बहुत मोटा है!
मैंने हल्के से छेड़ा- क्या आंटी, आपने पहले कभी इतना मोटा लंड नहीं लिया?
वह शर्माती हुई बोलीं- नहीं, इतना मोटा तो कभी नहीं … और वैसे भी मेरी चुत को कई दिनों से किसी ने छुआ तक नहीं है तो ये टाइट हो गई है!
मैंने नर्म स्वर में उनके गर्म दूध को सख्ती से मसलते हुए कहा- ठीक है, आंटी!
मैंने दूध के बाद उसी हाथ से उनके पेट को सहलाया और दूसरे से उनका चेहरा अपनी ओर घुमाया.
धीरे से मैंने अपने लंड को उनकी चुत में धकेला.
जैसे ही उसका सुपारा चुत के अन्दर गया, आंटी के मुँह से एक गहरी ‘आह्ह’ निकली.
मैंने उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, उनकी सिसकी को चूम लिया.
मैंने थोड़ा और जोर लगाया और मेरा आधा लंड उनकी तंग चुत में समा गया.
आंटी दर्द से मचलने लगीं, उनकी सांसें तेज हो गईं.
मैं रुक गया, उनके होंठों को चूमा और धीरे से उनकी ब्रा उतार दी.
उनके भरे-पूरे स्तन अब मेरे हाथों में थे और उनकी गर्मी मेरे बदन को और बेकरार कर रही थी.
मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए.
शुरू में आंटी दर्द से कराह रही थीं, उनकी सिसकारियां कमरे में गूँज रही थीं.
लेकिन कुछ देर बाद उनका दर्द मजे में बदल गया.
अब वे मेरे हर धक्के के साथ लय में हिलने लगीं.
बीच-बीच में मैं उनके मखमली कूल्हों पर हल्के से थप्पड़ मार देता और हर थप्पड़ के साथ उनकी सांसें और तेज हो जातीं.
उनकी आंखों में एक जंगली उत्तेजना चमकने लगती.
थोड़ी देर बाद आंटी ने फुसफुसाते हुए कहा- इरफ़ान चल पोजीशन बदलते हैं!
मैंने धीरे से अपना लंड उनकी चुत से बाहर निकाला.
वे सीधी लेट गईं, उन्होंने अपने पैर फैलाए और उनकी आंखों में एक न्योता था.
मैं उनके ऊपर चढ़ गया.
आंटी ने अपने नर्म हाथों से मेरे लंड को पकड़ा, उसे अपनी चुत के मुहाने पर रगड़ा और फिर धीरे से अन्दर करने का इशारा किया.
मैंने लंड पेला और फिर धक्के देना शुरू किए.
अब आंटी पूरी तरह मजे में डूब चुकी थीं.
उनकी आवाज में एक नशीली मस्ती थी.
वे फुसफुसा रही थीं- आह इरफू चोदो मुझे … आह इरफू … मेरी चुत को भर दो … उफ़ साले कितना मोटा है तेरा लंड … आह्ह … और जोर से चोद न आह!
उनकी हर बात मेरे बदन में आग लगा रही थी.
लगभग आधा घंटा की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मैं झड़ने के करीब था.
मैंने हांफते हुए कहा- आंटी, मेरा निकलने वाला है!
वे भी अपनी सांसें समेटती हुई बोलीं- अपना रस मेरी चुत में ही निकाल दे इरफ़ान. मैं तुम्हारे गर्म लावे को अपनी भट्टी में महसूस करना चाहती हूँ. मेरी चुत को अपने रस से भर दे आह!
उनके शब्दों ने मेरे जोश को और बढ़ा दिया. मैंने धक्कों की रफ्तार तेज कर दी.
आंटी ने भी अपने दोनों पैर मेरी कमर पर लपेट लिए और मैं तेज-तेज धक्के लगाते हुए उनकी चुत में झड़ गया.
Xxx आंटी चुदाई करने में सारी ताकत जैसे निचुड़ गई थी.
मैं उनके ऊपर ही ढह गया, हमारी सांसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं.
उसी अवस्था में हम दोनों सो गए.
सुबह हमने साथ खाना खाया.
आंटी जाने की तैयारी करने लगीं.
तभी मेरी नजर उनके बैग पर पड़ी.
उसमें कुछ अतिरिक्त कपड़े रखे थे.
मैंने पीछे से उन्हें प्यार से बांहों में लिया, अपना सिर उनकी गर्दन पर टिकाया और मेरे लंड का हल्का दबाव उनके कूल्हों पर था.
मैंने धीरे से पूछा- कल तो आप कह रही थीं कि कोई एक्स्ट्रा कपड़े नहीं लाईं?
वह हंसीं, फिर मेरे लंड को हल्के से सहलाती हुई बोलीं- कल इसका मजा लेना था न इरफ़ान!
मैंने छेड़ते हुए कहा- तो आज जाते-जाते इस लंड का स्वाद भी ले लो!
वे बोलीं- नहीं, अब देर हो रही है!
मैंने उनका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रखा और कहा- बाबू को नाराज करके नहीं जाते!
Xxx आंटी ने मेरे लंड को सहलाते हुए पूछा- क्या चाहता है मेरा बाबू?
मैंने शरारत से कहा- अपनी आंटी के मुँह में जाना चाहता है!
आंटी ने अपने खुले बालों को पीछे बांधा और मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गईं.
उनकी उंगलियों ने मेरी जींस की चेन खोली.
पहले उन्होंने मेरे लंड को चारों ओर से चाटा, उनकी गर्म जीभ मेरे अंडकोश तक पहुंची.
फिर धीरे से उसे अपने मुँह में लिया और मेरा लंड चूसने लगीं.
दोस्तो, वह पल मेरे लिए जन्नती था. लेकिन मेरा लंड पानी छोड़ने को तैयार ही नहीं था.
आखिरकार मैंने उन्हें खड़ा किया, उनकी जींस और पैंटी उतारी और एक पैर टेबल पर रखवा कर पीछे से उनकी चुत में लंड घुसेड़ दिया.
मैंने जोर-जोर से धक्के लगाने शुरू किए. आधा घंटा की तीव्र चुदाई के बाद मैं फिर झड़ने वाला था.
आंटी मेरे सामने बैठ गईं, उन्होंने लपक कर मेरे लंड को अपने मुँह में लिया और उसे चूसती हुई सारा रस पी गईं.
उनकी आंखों में संतुष्टि की चमक थी और मेरी आंखों में वासना की संतृप्ति का अहसास था.
Xxx आंटी चुदाई कहानी आपको कैसे लगी?